Guru Ravidas Jayanti Feb 2024 : पीएम नरेंद्र मोदी जी ने गुरु रविदास जयंती के अवसर पर वाराणसी में स्थिति सीर गोवर्धन में संत रविदास संग्रहालय की आधारशिला रखी है। इस मौके पर पीएम मोदी ने रविदास जी की शिक्षाओं को जीवन में उतारने का संदेश दिया।
Guru Ravidas Dohe in Hindi : गुरु रविदास जयंती के मौके पर पीएम मोदी ने संत रविदास की 25 फीट ऊंची मूर्ति का अनावरण भी किया। इस मौके पर पीएम मोदी ने संत रविदास की सीख को जीवन में उतारने का संदेश दिया। संत रविदास जयंती शनिवार 24 फरवरी 2024 को है। इस दिन माघ पूर्णिमा का पावन पर्व भी पड़ रहा है। इस कारण से संत रविदास जयंती का और भी महत्व माना जा रहा है। आप अगर जीवन पथ पर सफलता पाना चाहते हैं, तो आपको रविदासजी के जीवन के बारे में जानना चाहिए। संत रविदास जी का जीवन संघर्ष से भरा हुआ था लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी। आइए, जानते हैं संत रविदास कौन थे और इनके कौन-से दोहे आज भी सुने और पढ़े जाते हैं।
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Guru Ravidas Jayanti Feb 2024 : आखिर कौन थे संत रविदास
संत रविदास को एक भक्तिकालीन संत, दार्शनिक और समाज सुधारक के तौर पर जाना जाता है। रविदास जी भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे। भक्ति में लीन होने के बाद भी उन्होंने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुंह से नहीं मोड़ा और उन्होंने समाज में फैली बुराइयों को रोकने के लिए लोगों में जागरुकता फैलाई।
संत रविदास के समय में सामाजिक भेदभाव बहुत ही ज्यादा था। संत रविदास ने भेदभावपूर्ण मानसिकता को छोड़कर सभी लोगों को आपसी मेलजोल और प्रेम का संदेश दिया। माना जाता है कि उनके पास कई दिव्य शक्तियां थीं। जिससे उन्होंने कई चमत्कार किए थे। उनके चमत्कारों में पत्थर को पानी में तैराने, कुष्ठ रोगियों को ठीक करने और अपने बचपन के दोस्त को जीवनदान देना शामिल है ।
गुरु रविदास जी के प्रसिद्ध दोहे-
मन चंगा तो कठौती में गंगा. इस दोहे का अर्थ है कि अगर आपका दिल साफ है और आप किसी के बारे में गलत नहीं सोचते, तो आपके मन में स्वंय ईश्वर का वास होता है। ऐसे में आपको गंगा या फिर किसी और पवित्र स्थान में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि मन पवित्र होने पर ईश्वर आपके साथ सदा होता है।
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात इस दोहे में संत रविदास ने जाति से समाज को होने वाली हानि के बारे में बताया है। इस दोहे का अर्थ है कि जिस तरह केले के तने को छिलते रहने से उसके नीचे से पत्ते ही पत्ते निकलते रहते हैं और अंत में पूरा पेड़ ही खत्म हो जाता है। कुछ इसी तरह लोगों को भी जातियों में बांट दिया गया है। अंत में लोग मर जाते हैं, खत्म हो जाते हैं लेकिन उनकी जातियां खत्म नहीं होती।
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
इस दोहे का अर्थ है कि लोग बहुमूल्य ईश्वर को छोड़कर हीरे जैसी बाकी भौतिक वस्तुओं की आशा रखते हैं लेकिन बाद में उन्हें कुछ नही मिलता बल्कि वो नर्क में जाते हैं। इसका मतलब है कि भक्ति को छोड़कर जाने वाले मनुष्य का कहीं कोई ठिकाना नहीं होता ।
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